अभी हम 144 साल में आने वाले महाकुंभ को मना रहे हैं। महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का एक भव्य आयोजन है, जिसमें प्रयागराज (यूपी) में त्रिवेणी संगम पर स्नान समारोह होता है, लाखों तीर्थयात्री इस पवित्र कार्य में भाग लेने के लिए आते हैं, यह मेला, शिक्षा, संतों द्वारा धार्मिक प्रवचन, साधुओं की सामूहिक सभा और मनोरंजन के साथ सामुदायिक व्यापार का उत्सव भी है।
जिस तरह कुंभ में हम आस्था और अनुष्ठान, धैर्य और अनुशासन के साथ करते हैं, उसी तरह निवेश में भी विश्वास, अनुशासन और धैर्य जरूरी है। आइए हम दोनों के संबंध को समझें कि निवेश के लिए हम अपने धर्म से मार्गदर्शन कैसे ले सकते हैं।
1. श्रद्धा और निवेश का विश्वास: लॉन्ग-टर्म दृष्टि अपनाएं, शॉर्ट-टर्म उतार-चढ़ाव से न घबराएं।
2. नियमित प्रार्थना = नियमित SIP: अनुशासित निवेश ही बड़े रिटर्न का आधार है।
3. भक्ति में धैर्य, निवेश में अनुशासन: निरंतरता ही सफलता की कुंजी है।
4. भगवान की लीला = बाजार का चक्र: उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं, धैर्य ही लाभ दिलाएगा।
5. अच्छे कर्म = सही निवेश रणनीति: सोच-समझकर किया गया निवेश भविष्य में समृद्धि लाता है।
6. तीर्थ यात्रा = डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो: संतुलित निवेश से जोखिम कम और लाभ अधिक।
7. ईश्वर की कृपा = कंपाउंडिंग का जादू: समय के साथ धैर्य रखें, धन अपने आप बढ़ेगा।
यदि हम निवेश में भी इन बुनियादी चीजों का अभ्यास करते हैं जैसा कि हम अपने धर्म और आस्था में करते हैं, तो हम निश्चिंत हो सकते हैं कि हमें अपने निवेश में अमृत मिलेगा।